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भातमहुल में धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर मसीही समाज और भीम आर्मी का विरोध प्रदर्शन, पुलिस प्रशासन ने दिया आश्वासन

भातमहुल में धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर मसीही समाज और भीम आर्मी का विरोध प्रदर्शन, पुलिस प्रशासन ने दिया आश्वासन

छत्तीसगढ़: हसौद, जिला शक्ति।

थाना हसौद क्षेत्र के ग्राम पंचायत भातमहुल में धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर विवाद ने नया मोड़ ले लिया। बीते दिनों कुछ ग्रामीणों एवं सामाजिक तत्वों ने ग्राम के पास्टर वीर सिंह और मसीही समाज पर धर्मांतरण का आरोप लगाते हुए थाना हसौद में शिकायत दर्ज कराई। शिकायतकर्ताओं की मांग थी कि गाँव में कलीसिया (चर्च) की प्रार्थना और आराधना सभाएँ रोकी जाएँ।

 

इस शिकायत के आधार पर थाना प्रभारी ने पास्टर वीर सिंह को पूछताछ हेतु थाने बुलाया। मामला यहीं नहीं रुका, बल्कि मसीही समाज और भीम आर्मी जिला शक्ति के नेतृत्व में विरोध तेज हो गया। जिला अध्यक्ष नंदलाल कुर्रे के नेतृत्व में भीम आर्मी कार्यकर्ताओं और मसीही समाज के लोगों ने थाना हसौद का घेराव कर नारेबाजी की और धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देने वाले संवैधानिक प्रावधानों का हवाला दिया।

 

प्रदर्शनकारियों ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक प्रत्येक नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार दिया गया है। अनुच्छेद 25 व्यक्ति को धर्म पालन, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है, वहीं अनुच्छेद 26 धार्मिक संस्थाओं को अपने प्रबंधन का अधिकार प्रदान करता है। अनुच्छेद 27 में किसी भी नागरिक को जबरन धार्मिक कार्यों के लिए कर देने से मुक्त किया गया है, जबकि अनुच्छेद 28 में शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा पर स्पष्ट प्रावधान है। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि इन संवैधानिक अधिकारों का हनन करना न केवल कानूनन अपराध है बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों पर भी सीधा हमला है।

विरोध प्रदर्शन के दौरान “जय भीम – जय संविधान” और “धार्मिक स्वतंत्रता हमारा अधिकार है” जैसे नारे गूंजे। भीम आर्मी जिला अध्यक्ष नंदलाल कुर्रे ने स्पष्ट कहा कि यदि आगे भी मसीही समाज को प्रार्थना और आराधना से रोका गया तो वे कलेक्ट्रेट का घेराव करेंगे और आर-पार की लड़ाई लड़ने से पीछे नहीं हटेंगे। उन्होंने अल्पसंख्यक समुदायों को भरोसा दिलाया कि भीम आर्मी उनके साथ खड़ी है और आवश्यकता पड़ने पर प्राणों की आहुति तक देने को तैयार है।

 

स्थिति की गंभीरता को देखते हुए पुलिस प्रशासन सक्रिय हुआ। मौके पर एसडीओपी, थाना प्रभारी और पूरा थाना स्टाफ उपस्थित रहा। पुलिस अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों को समझाइश दी कि शासन-प्रशासन उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं होने देगा। साथ ही यह भी कहा गया कि सभी धार्मिक गतिविधियाँ कानून और शासन की गाइडलाइन के दायरे में रहकर शांतिपूर्ण ढंग से आयोजित की जानी चाहिए।

एसडीओपी ने बताया कि कुछ ग्रामीणों की आपत्तियों को ध्यान में रखते हुए शिकायत की जांच की जा रही है। उन्होंने कहा कि किसी भी आयोजन का उद्देश्य किसी समुदाय या व्यक्ति का अपमान करना नहीं होना चाहिए और किसी के धार्मिक अधिकारों का हनन भी स्वीकार्य नहीं है। चर्चा और समझाइश के बाद प्रदर्शनकारी शांतिपूर्ण ढंग से वहाँ से लौट गए।

 

यह घटना सिर्फ एक गाँव तक सीमित विवाद नहीं है, बल्कि यह धार्मिक स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक अधिकारों पर एक बड़ा प्रश्न भी खड़ा करती है। भारत जैसे विविधता-भरे देश में हर समुदाय को अपनी आस्था के अनुसार जीने का अधिकार है। यदि किसी समुदाय को उसके धर्म का पालन करने से रोका जाता है तो यह न केवल संविधान की भावना पर चोट है, बल्कि सामाजिक सौहार्द के लिए भी खतरा है।

 

निष्कर्ष:

भातमहुल की घटना ने यह संदेश दिया है कि लोकतांत्रिक भारत में किसी भी प्रकार की धार्मिक असहिष्णुता स्वीकार्य नहीं होगी। मसीही समाज और भीम आर्मी का यह विरोध प्रदर्शन संविधान की उस आत्मा को जीवित रखने का प्रतीक है, जिसमें समानता, स्वतंत्रता और न्याय की गारंटी निहित है। प्रशासन द्वारा दिया गया आश्वासन यह दर्शाता है कि शासन संवैधानिक मूल्यों की रक्षा को लेकर सजग है। अब देखना यह होगा कि आने वाले समय में जमीनी स्तर पर धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान किस प्रकार कायम रहता है।

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